अहिल्याबाई -आरती

जय अहिल्या बाई ! माँ,जय अहिल्या बाई !!
दया धर्म की मूरत , शिव की अनुयायी ।।
जन्म मानको के घर, चौंडी में पाया ।


ससुर मल्हार होल्कर,पति खंडे राया ।।
सहे निजी जीवन में , तुमने दुख भारी ।
बनीं लोक माता तुम, जन-जन दुख हारी ।।

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तीस वर्ष मालव पर , तुमने राज किया ।
हर प्राणी संरक्षित, सुख के साथ जिया ।।
तुमने राघोवा के , दर्प हरे सारे ।


समर भूमि में तुमसे ,चन्द्रावत हारे ।।
हत्या लूट जहाँ थी , पेशे गत जारी ।
वश में किये शक्ति से,तुमने पिंडारी ।।


मुख पर दिव्य अलौकिक,शोभा कल्याणी ।
धनगर वंश शिरोमणि , जनप्रिय महारानी ।।
यश-प्रताप परहित का,जब जग में छाया ।


महा विरुद जीते जी , ”पुण्यश्लोक”पाया ।।
 ग्रंथ कार करते हैं , शब्दों से पूजा ।
प्रजा परायण तुम-सा, हुआ नहीं दूजा।।


तुम-सा शासक कोई , भारत फिर पावे ।
रोज़ी-रोटी छत हो , मन का डर ,जावे ।।


माँ तेरी यश गाथा , कवि ‘दीपक’ गाए ।
कलयुग की देवी को ,जग शीश झुकाए ।।