भजन-“बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा”

दऊँ गुरु पद पदुम परागा

सुरुचि सुबास सरस अनुरागा

गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन

नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन

tulsidas-bhajan-bandaon-guru-pad-padum-paraga

जे गुर चरनु रेनु सिर धरहीं

ते जनु सकल बिभव बस करहीं

श्री गुर पद नख मनि गन जोती

सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती

गुर कें बचन प्रतीति न जेही

सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही

गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई 

जौं बिरंचि संकर सम होई

गुर पितु मातु महेस भवानी

प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी

मातु पिता गुर स्वामि निदेसू

सकल धरम धरनीधर सेसू

मातु पिता गुर प्रभु कै बानी

बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी

बंदउं गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नररूप हरि

महामोह तम पुंज, जासु बचन रबि कर निकर

मातु पिता गुरु स्वामि सिख, सिर धरि करहि सुभायँ

लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर, नतरु जनमु जग जायँ