अभंग,संत भानुदास बालक्रिडा-

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उठी तात मात भये प्रात रजनी सो तीमीर गई ।
मीलत बाल सकल ग्वाल सुंदर कान्हाई ॥१॥


जागों गोपाल लाल जागो गोविंदलाला जाननी बल जाई ॥धृ०॥
संगीत सब फीरत बयन तुमबीन नहीं छुटत नहीं दयन ।

sant-bhanudas-abhang-balkrida

त्यजो शयन कमलनयन सुंदर मुख भई ॥२॥
मुखती पट दूर किजो जननीकु दर्श दीजो ।


दधीं खीर मांगलीं जो खीर खांड मिठाई ॥३॥
जमत जमत शामराम सुंदरमुख सदा राम ।


थाथी कीं छुट कछु भानुदास पायीं ॥४॥