भजन-“प्रान वही जु रहैं रिझि वापर”

प्रान वही जु रहैं रिझि वापर, रूप वही जिहिं वाहि रिझायो।


सीस वही जिहिं वे परसे पग, अंग वही जिहीं वा परसायो

raskhan-bhajan-pran-vahi-ju-rahe-rijhi-vapar


दूध वही जु दुहायो वही सों, दही सु सही जु वहीं ढुरकायो।


और कहाँ लौं कहौं ‘रसखान री भाव वही जू वही मन भायो॥