भजन-“कर कानन कुंडल मोरपखा”

कर कानन कुंडल मोरपखा उर पै बनमाल बिराजती है


मुरली कर में अधरा मुस्कानी तरंग महाछबि छाजती है

raskhan-bhajan-kar-kanan-kundal-morphaka


रसखानी लखै तन पीतपटा सत दामिनी कि दुति लाजती है


वह बाँसुरी की धुनी कानि परे कुलकानी हियो तजि भाजती है