भजन-“धूरि भरे अति सोहत स्याम जू”

धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।

खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।

raskhan-bhajan-dhuri-bhare-ati-sohat-shyam-ju

वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी

काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।