भजन,मीराबाई-“हरि तुम हरो जन की भीर”

हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,


तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,

mirabai-bhajan-hari-tum-haro-jan-ki-bhir

धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,


धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,


कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥